लखनऊ । रुमेटाइड आर्थराइटिस यानी की रयूमेटिक गठिया एक ऑटो इम्यून रोग है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा जोडों पर होने वाले हमले से रोगी गठिया का शिकार हो जाता है। जोडों के आस-पास सूजन से शुरू होने वाली इस बीमारी के शिकार आज हर आयुवर्ग के लोग हो रहे हैं। जोड़ों के आस-पास सूजन, दर्द, कड़ापन, जोड़ों की कार्यक्षमता का कम होना, लालिमा, मांसपेशियों की कमजोरी आदि इस रोग के प्रारंभिक लक्षण हैं। यह जानकारी आज डॉ. पंकज भारती ने दी।
डॉ. भारती ने कहा, “शारीरिक सक्रीयता ही जोड़ों को स्वस्थ रखने का रामबाण इलाज है।” ज्वाइंट का कम इस्तेमाल जोड़ों में कठोरता पैदा करता है। कुल मिलाकर शरीर के फिट रहने से स्वास्थ को कई मामलों में लाभ होता है। रयूमेटिक गठिया के एक पूर्व रोगी के विषय में बताते हुए डॉ. भारती ने कहा, कि “श्रीमती सबरवाल पिछले कई वर्षों से गठियाँ रोग से पीड़ित थीं। उनके लगभग सभी जोड़ों में गठिया फैल चुकी थी, छोटे से बड़े सभी जोड़ दर्द के गिरफ्त में थे। उन्होंने डॉ. भारती के होलिस्टिक हेल्थ अस्पताल से उपचार करवाया और आज वह पिछले पांच सालों से सामान्य जीवन यापन कर रही है।”
डॉ. भारती कहते है कि रयूमेटिक गठिया जीवन शैली की विकृति की देन है। यह एक मामूली से दर्द के रूप मे शुरू होता है और धीरे-धीरे रोगी के जोड़ों को अपंग बना देता है। दोष पूर्ण आहार, तनाव युक्त जीवन और विकृति जीवन शैली से जन्मी इस बीमारी का मुख्य कारक स्वयं की प्रतिरक्षा प्रणाली है। उत्प्रेरक आहार विशेष रूप से दूध, प्रोटीन, गेहूँ प्रोटीन, मक्का और सोया प्रोटीन की रोग में एक विशेष भूमिका है। ये भोजन अपाच्य रूप से शरीर में विचरण करता है और प्रतिरक्षी तंत्र को शिथिल करता है। सेल्स में अधिक अम्ल हो जाने के कारण जोड़ों और कोशिकाओं में सूजन जैसे चिन्ह दिखायी देते हैं। निगरानी और शीघ्र इलाज के अभाव में यह बीमारी एक गंभीर रूप ले सकती है। पर डॉ. भारती इस बीमारी से जुड़े कुछ मिथकों से पर्दा उथाना चाहते हैं। वे कहते है कि, लोगों का मानना है कि यह एक बढ़ती हुई उम्र के लोगों और विशेष रूप से बच्चों में अधिक पायी जाती है।
सुझाव:
शारीरिक सक्रीयता ही जोड़ों को स्वस्थ रखने का रामबाण इलाज हैः डॉ. भारती
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